भारत को गाँवों का देश कहा जाता है, क्योंकि इस देश की आत्मा गाँवों में बसती है। ऐसी स्थिति में गाँवों को जानना-समझना जरूरी है। गाँवों से जुड़ी जानकारियों को जानना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि जिस गति से शहरीकरण हो रहा है, उससे लगता है गाँवों से जुड़ी जानकारियाँ अतीत के पन्नों में कहीं खो न जाएँ। गाँवों से जुड़ी जानकारियों या इतिहास को सँजोकर रखना और आने वाली पीढ़ियों को उससे अवगत कराना हमारा दायित्व है, जिससे वे अपने मूल को जान सकें तथा उससे जुड़ी रहें। महात्मा गाँधी हमेशा गाँवों के विकास पर बल देते थे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी ग्रामीण भारत में शिक्षा के विकास की बात कही गई है। 'एसजीटी यूनिवर्सिटी के आस-पास के गाँवों का इतिहास' पुस्तक का उद्देश्य भी यही है। पूरे विश्व में देखा गया है कि जहाँ कहीं भी विश्वविद्यालय की स्थापना होती है, तो उसके आस-पास के क्षेत्रों में आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, यानी हर तरह का सकारात्मक विकास अपेक्षाकृत तेजी से होता है। इस पुस्तक को लिखने के लिए एसजीटीयू (एसजीटी यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम) के आस-पास के ही गाँवों का चयन करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह रहा कि चंदू-बुढेड़ा-सुल्तानपुर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय की स्थापना के कारण लोगों की सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि में कती बदलाव आया। पुस्तक में दो विशेष साक्षात्कारों को शामिल किया है। इसके अतिरिक्त कुल 25 (7 दिल्ली के तथा 18 हरियाणा के) गाँवों के इतिहास को इसमें लिया गया है। विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसके साथ ही शोध को बढ़ावा देने में भी उनकी अग्रणी भूमिका होती है। गाँवों में शोध के लिए सामग्री की कमी नहीं है। जरूरत इस बात की है कि उन पर कार्य किया जाए। इतिहास लेखन का यह कार्य उसी कड़ी का एक बहुत छोटा प्रयास है। उम्मीद है शोध-आधारित यह पुस्तक ग्रामीण विरासत और संसाधनों पर कार्य करने के लिए छात्र-छात्राओं, अध्यापकों तथा शोधकर्ताओं का मार्ग प्रशस्त करेगी।
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